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म॒तयः॑ सोम॒पामु॒रुं रि॒हन्ति॒ शव॑स॒स्पति॑म्। इन्द्रं॑ व॒त्सं न मा॒तरः॑॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

matayaḥ somapām uruṁ rihanti śavasas patim | indraṁ vatsaṁ na mātaraḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

म॒तयः॑। सो॒म॒ऽपाम्। उ॒रुम्। रि॒हन्ति॑। शव॑सः। पति॑म्। इन्द्र॑म्। व॒त्सम्। न। मा॒तरः॑॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:41» मन्त्र:5 | अष्टक:3» अध्याय:3» वर्ग:3» मन्त्र:5 | मण्डल:3» अनुवाक:4» मन्त्र:5


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - जो (मतयः) उत्तम बुद्धि से युक्त मनुष्य लोग (शवसः) बल के (पतिम्) पालन करनेवाले (उरुम्) बहुत ऐश्वर्य्य से पूर्ण (सोमपाम्) ऐश्वर्य्य के रक्षक (इन्द्रम्) ऐश्वर्य्य से युक्त पुरुष (मातरः) गौवें (वत्सम्) बछड़े को (न) जैसे (रिहन्ति) चाटती वैसे मिलते हैं, वे सुख को प्राप्त होते हैं ॥५॥
भावार्थभाषाः - जैसे गौवें प्रेमभाव का आश्रयण करके बछड़ों में प्रेम धारण करती हैं, वैसे ही राजा आदि अध्यक्ष पुरुष सेनाओं की प्रजाओं के प्रेमभाव से रक्षा करें ॥५॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

ये मतयः शवसस्पतिमुरुं सोमपामिन्द्रं मातरो वत्सं न रिहन्ति ते सुखं लभन्ते ॥५॥

पदार्थान्वयभाषाः - (मतयः) प्रज्ञायुक्ता मनुष्याः (सोमपाम्) ऐश्वर्य्यरक्षकम् (उरुम्) बह्वैश्वर्य्यम् (रिहन्ति) लिहन्ति (शवसः) बलस्य (पतिम्) पालकम् (इन्द्रम्) ऐश्वर्य्ययुक्तम् (वत्सम्) (न) इव (मातरः) गावः ॥५॥
भावार्थभाषाः - यथा गावो वात्सल्यभावमाश्रित्य वत्सेषूत्तमं प्रेम दधाति तथैव राजादयोऽध्यक्षाः सेनाः वात्सल्यभावेन रक्षन्तु ॥५॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जसे गायींना वासराबद्दल वात्सल्य व प्रेमभाव असतो तसेच राजा इत्यादी अध्यक्ष पुरुषांनी सेना व प्रजा यांचे प्रेमभावाने रक्षण करावे. ॥ ५ ॥